शराबबंदी पर जीतन राम मांझी की दो-टूक—“कानून सही, लेकिन गरीबों पर कार्रवाई गलत”
गया

गया – केंद्रीय मंत्री और हम नेता जीतन राम मांझी ने बिहार की शराबबंदी को लेकर अपनी ही सरकार को कड़े शब्दों में नसीहत दी है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का शराबबंदी कानून अपने उद्देश्य में बिल्कुल सही
है। “इससे घरों में झगड़े कम हुए हैं, घरेलू हिंसा घटी है, और समाज में सकारात्मक बदलाव दिखे हैं। शराब व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगाड़ देती है—ये सभी ने देखा है,” मांझी ने कहा। “मेरे कहने पर हुई थी तीसरी समीक्षा, पर उसका पालन उल्टा हो रहा है” मांझी ने याद दिलाया कि
शराबबंदी लागू होने के बाद जब तीसरी बड़ी समीक्षा हुई थी, तो वह उनके आग्रह पर हुई थी। उस समीक्षा में स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए थे कि लेकिन गरीब मजदूरों या मामूली मात्रा में शराब पकड़े जाने वालों को जेल न भेजा जाए।मांझी ने आरोप लगाया कि आज स्थिति उलटी हो
गई है। “पता नहीं वर्तमान प्रशासन को सरकार से चिढ़ है या जनता से। गरीबों को पकड़कर जेल भेजा जा रहा है, जबकि असली तस्कर खुले घूम रहे हैं,” उन्होंने कहा। मंत्री ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि बिहार में शराबबंदी से जुड़े लगभग 6 लाख मामले दर्ज हैं। इनमें से 4 लाख केस ऐसे हैं, जिनमें आरोपी न तो आदतन शराबी
थे और न तस्कर। “ये पहली बार पकड़े गए लोग हैं। ये सभी गरीब तबके के लोग हैं। इन्हें जेल भेजना गलत है,” मांझी ने कहा। बातचीत के दौरान मांझी ने शराब के धंधेबाजों के राजनीति से संबंध को लेकर बड़ा दावा किया। उन्होंने कहा: “हम देख रहे हैं कि शराब के तस्कर
और धंधेबाज बड़े-बड़े चुनाव लड़ रहे हैं। 5 से 10 करोड़ रुपये खर्च कर चुनाव जीत रहे हैं। मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं।” मांझी ने कहा कि बिहार के कई क्षेत्रों में पहाड़ों, नदी किनारों, जंगलों और खेतों में हर दिन हजारों लीटर अवैध शराब तैयार हो रही है, लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं होती। उन्होंने स्पष्ट आरोप लगाया कि यह सब अफसरों और विभागीय कर्मियों की मिलीभगत से हो रहा है। मांझी ने कहा कि सख्त कार्रवाई का जिम्मा प्रशासन का है। “नीतीश कुमार खुद जाकर पकड़ने नहीं जाएंगे। अफसरों को ही काम में पारदर्शिता लानी होगी,” उन्होंने कहा।“नीतीश जी खुद कार्रवाई नहीं करेंगे, अफसरों को ईमानदारी दिखानी होगी” अब जीतन राम मांझी के बयान ने बिहार की शराबबंदी नीति और प्रशासनिक कार्रवाई पर नई बहस छेड़ दी है। गरीबों पर बढ़ती कार्रवाई बनाम तस्करों पर ढिलाई—यह मुद्दा चुनावी और प्रशासनिक दोनों मोर्चों पर चर्चा का विषय बना हुआ है।




