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धंधेबाज़ को पकड़ो, मजदूर को मत सताओ”—मांझी के बयान पर भाजपा–राजद आमने-सामने, शुरू हुई सियासी तकरार।

पटना

पटना- बिहार की राजनीति एक बार फिर शराबबंदी को लेकर गरमाती दिख रही है। केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने अपनी ही सरकार को शराबबंदी लागू करने में कुप्रबंधन और गलत कार्रवाई का आरोप लगाकर सत्ता गलियारों में खलबली मचा दी है। मांझी ने कहा कि शराबबंदी की तीसरी समीक्षा भी उनके दबाव में कराई गई थी, जिसमें स्पष्ट निर्देश थे कि तस्करों पर सख्त कार्रवाई हो, लेकिन गरीब मजदूरों को परेशान न किया जाए। “मगर आज हालात बिल्कुल उलट हैं,” उन्होंने कहा। मांझी ने कटाक्ष भरे अंदाज में कहा कि शराबबंदी कानून सही था, लेकिन वर्तमान प्रशासन का रुख गरीबों के प्रति कठोर है। उन्होंने आरोप लगाया कि तस्कर खुले में कारोबार कर रहे हैं, जबकि पहली बार पकड़े गए मजदूरों और गरीब तबके को जेल भेजा जा रहा है। मांझी के बयान पर भाजपा ने अपनी सरकार का बचाव किया।भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा “बिहार में शराबबंदी है। अगर कोई अवैध व्यापार करता है तो सरकार कार्रवाई करती है। सरकार सख्त है। इसमें कौन किस धर्म या जाति का है, इससे फर्क नहीं पड़ता। जो अवैध कार्य में शामिल है, उसे बख्शा नहीं जाता।” पटेल ने यह भी कहा कि शराबबंदी पर सरकार की प्रतिबद्धता पहले की तरह मजबूत है। वहीं, राजद ने इस मुद्दे पर जोरदार हमला बोला। राजद प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा “बिहार में सत्ता पक्ष के लोग ही शराब माफियाओं को संरक्षण दे रहे हैं। मांझी जी को यह भी बताना चाहिए कि यदि शराब माफिया पर कार्रवाई नहीं हो रही तो उसका जिम्मेदार कौन है? सत्ता पक्ष ही है।” उन्होंने आगे आरोप लगाया कि मांझी दोहरी राजनीति कर रहे हैं “वे मलाई भी खा रहे हैं और चेहरा भी चमकाने में लगे हैं। यह दोहरी नीति है।” मांझी के बयान से एक ओर सरकार की स्थिति पर सवाल उठे हैं, वहीं विपक्ष को भी हमला बोलने का मौका मिला है। शराबबंदी लागू होने के 8 साल बाद भी इसकी सफलता और विफलता पर बहस लगातार तेज होती जा रही है। शराबबंदी पर मांझी के तीखे बयान ने बिहार की राजनीतिक जमीन को दोबारा गर्म कर दिया है। जहां भाजपा सरकार की कार्रवाई को सही ठहरा रही है, वहीं राजद सत्ता पक्ष को ही शराब माफियाओं का संरक्षक बता रही है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा राजनीतिक विमर्श के केंद्र में रह सकता है।

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