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वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर के. के. एम. कॉलेज में हुआ सामूहिक गायन।

जमुई

जमुई। शुक्रवार को जिला मुख्यालय स्थित के. के.एम. कॉलेज स्थित डॉ. अंबेडकर छात्रावास के सभा-कक्ष में वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में राज्य सरकार के उच्च शिक्षा विभाग के निर्देशानुसार एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर कॉलेज के शिक्षक, शिक्षकेत्तर कर्मचारी और छात्र-छात्राओं ने सामूहिक रूप से वंदे मातरम का गायन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कॉलेज की प्राचार्या डॉ. (प्रो.) कंचन गुप्ता ने की। डॉ. कंचन गुप्ता ने कहा कि वंदे मातरम भारत जागरण का प्रथम महामंत्र है, जिसने गुलाम भारत को आत्मगौरव का एहसास कराया। यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि राष्ट्रधर्म की आराधना है। उन्होंने आगे कहा कि वंदे मातरम हमें यह सिखाता है कि मां की सेवा ही राष्ट्र की सच्ची सेवा है। भारतीय शास्त्रों में कहा गया है, माता भूमि: पुत्रोऽहम पृथिव्याम अर्थात पृथ्वी हमारी माता है और हम उसके पुत्र हैं। इसलिए मातृभूमि का वंदन और गुणगान हमारा परम कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम का अर्थ ही है, हे मातृभूमि! मैं तुम्हें नमन करता हूं, यह पंक्ति हर भारतीय के हृदय में राष्ट्रीय भावना की ज्योति प्रज्वलित करती है। कॉलेज के स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. गौरी शंकर पासवान ने अपने संबोधन में कहा कि वंदे मातरम भारत की आत्मा का अमर घोष है। यह भारत जागरण की शंखध्वनि और मां भारती की आराधना का अमर गीत है। उन्होंने कहा कि यह गीत देशप्रेम, संस्कृति, समर्पण और शक्ति का प्रतीक है। जब तक भारत रहेगा, तब तक वंदे मातरम भी अमर रहेगा। उन्होंने बताया कि इस गीत के आज 150 वर्ष पूरे हो गए हैं, और यह हमें याद दिलाता है कि विकास का अर्थ केवल आर्थिक प्रगति नहीं, बल्कि मातृभूमि की सेवा में समर्पित चरित्र और चेतना का उत्थान भी है। डॉ. गौरी शंकर ने कहा कि आज जब भारत विश्वपटल पर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, तब वंदे मातरम हमें यह संदेश देता है कि राष्ट्र पहले, स्वार्थ बाद में और मातृभूमि सर्वोपरि है। इस अवसर पर श्री रवीश कुमार सिंह ने कहा कि वंदे मातरम गीत एकता, समर्पण और देशभक्ति का अमर पाठ सिखाता है। जब तक भारत की मिट्टी में जीवन रहेगा, तब तक वंदे मातरम की गूंज अमर बनी रहेगी। कार्यक्रम में डॉ. मनोज कुमार, प्रो. सरदार राम, डॉ. अनिंदो सुंदर पोले, डॉ. सुदीप्ता मोंडल, डॉ. रश्मि, डॉ. लिसा, डॉ. कैलाश पंडित, डॉ. अजीत भारती, डॉ. दीपमाला, डॉ. सत्या शुभांगी सहित प्रधान लिपिक कृपाल सिंह, सुशील कुमार, रामचरित्र मानस और अन्य शिक्षक-शिक्षिका एवं बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित थे। सभी ने एक स्वर में कहा कि वंदे मातरम गीत को 1875 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने लिखा था, जबकि 1896 में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे स्वर देकर इसे भावनाओं और संगीत की अमर धारा बना दिया। कार्यक्रम के अंत में उपस्थित जनों ने राज्य सरकार के इस निर्णय की सराहना की कि वंदे मातरम के 150वें वर्ष पर पूरे वर्षभर देशभर में विभिन्न आयोजन कर इस राष्ट्रीय गीत की गौरवगाथा को जन-जन तक पहुंचाया जाएगा।

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