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विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग, पीजी एनएसएस इकाई तथा इस्कॉन, दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में सेमिनार आयोजित।

दरभंगा

 

*”आध्यात्मिकता की प्रासंगिकता” विषय पर अनेक शिक्षक, शोधार्थी, छात्र-छात्राओं एवं कृष्णभक्तों ने रखे महत्वपूर्ण विचार*

 

*सेवा करना ही मानव का वास्तविक धर्म है, जिससे हीन मानव पशु के समान- मुख्य वक्ता रमण रेती दास*

 

*आध्यात्मिकता पूर्ण जीवन शैली के साथ माया-मोह से दूर होकर मानव द्वारा परम शांति की प्राप्ति संभव- डॉ चौरसिया*

 

दरभंगा – ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग, पीजी एनएसएस इकाई तथा इस्कॉन मंदिर, शुभंकरपुर, दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में “आध्यात्मिकता की प्रासंगिकता” विषय पर विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग के कक्ष में विभागाध्यक्ष डॉ शिवानन्द झा की अध्यक्षता में सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में इंजीनियर केशव गौर हरिदास, मुख्य वक्ता रमण रेती दास, संयोजक

एवं विषय प्रवेशक डॉ आर एन चौरसिया, वक्ता- डॉ राजीव कुमार, डॉ संजीव कुमार साह एवं डॉ प्रियंका राय, धन्यवाद कर्ता डॉ सोनू राम शंकर तथा संचालन कर्ता ईशान के साथ ही इस्कॉन से आए अमर कुमार तथा तरुण तेज, कंचन कुमारी, पारस कुमार देव, कुणाल कुमार, आस्थानन्द यादव, जुगनू परवीण, श्यामलाल राय, राहुल राय, शेष कुमार, सुधांशु कुमार आदि उपस्थित थे।

मुख्य वक्ता रमण रेती दास ने पीपीटी के माध्यम से आध्यात्मिकता के महत्व की चर्चा करते हुए कहा कि धर्म ही मानव को श्रेष्ठ बनाता है। सेवा करना ही मानव का वास्तविक धर्म होता है। धर्म से हीन मानव पशु के समान होते हैं। उन्होंने श्रोताओं के विभिन्न प्रश्नों का समुचित उत्तर देते हुए कहा कि आध्यात्मिकता ही आत्मा को सुपर आत्मा अर्थात् परमात्मा से मिलता है। ईश्वर की सेवा ही भक्ति है और यही हमारे जीवन का मूल उद्देश्य है।

अतिथियों का स्वागत एवं विषय प्रवेश कराते हुए एनएसएस समन्वयक डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि वर्तमान भौतिकवादी युग में मानव अपने सांसारिक माया-मोह के जाल में फसता जा रहा है, पर उसे स्थायी आनंद की प्राप्ति नहीं हो पा रही है। आध्यात्मिकता के अभाव में मृगतृष्णा की तरह वह मुक्ति के लिए छटपटा रहा है। उन्होंने आध्यात्मिकता एवं मोक्ष की चर्चा करते हुए कहा कि नर की सेवा ही नारायण की वास्तविक सेवा है। आध्यात्मिकता पूर्ण जीवन शैली को अपनाकर हम परम शांति को प्राप्त कर सकते हैं। अध्यक्षीय संबोधन में डॉ शिवानन्द झा ने संगोष्ठी के विषय को प्रासंगिक एवं विस्तृत बताते हुए कहा कि हमें अपने अहंकार का सर्वथा त्याग कर कर्त्तव्यनिष्ठ बनना चाहिए। मानव विवेकशील प्राणी है। विवेक की प्रभावशीलता से ही व्यक्ति में मानवता का संचार होता है। आध्यात्मिकता की महत्ता प्राचीन काल से लेकर भविष्य में भी सदा बनी रहेगी। इसके बिना हमारा जीवन अधूरा है।

मुख्य अतिथि इंजीनियर केशव ने बताया कि इस्कॉन संस्था की स्थापना 1966 में ए सी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद द्वारा हुई थी। उन्होंने बताया कि इस्कॉन- इंटरनेशनल सोसाइटी फोर कृष्णा कॉन्शसनेस है जो सदा से आध्यात्मिकता का संदेश दे रहा है। आध्यात्मिकता से ही मानव आनंद की अनुभूति कर सकता है, क्योंकि भौतिकता का कोई अंत नहीं है। वरीय प्राध्यापक डॉ राजीव कुमार ने कहा कि आध्यात्मिकता एक तप है। हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि छोड़कर अपने अंदर मानवता का गुण विकसित करना चाहिए। तभी अच्छे समाज का निर्माण संभव है। डॉ संजीव कुमार साह ने पुरुषार्थ चतुष्टय की चर्चा करते हुए कहा कि हमें बाजारवाद की जगह मानवतावाद की ओर लौटना होगा, तभी हमारा कल्याण संभव है। डब्ल्यूआईटी की उप कुलसचिव डॉ प्रियंका राय ने कहा कि प्रत्येक मानव अपने आप में दर्शनशास्त्री होता है। सुख क्षणिक होता है, पर आनंद स्थायी। जब भक्त भगवान की शरण में जाता है, तब उसे स्थायी आनंद की प्राप्ति होती है। उन्होंने मानव मूल्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आध्यात्मिकता के प्रभाव से ही भौतिकता शिथिल हो सकता है। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए पीजी एनएसएस इकाई के कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ सोनू राम शंकर ने कहा कि हमें ईश्वर का निमित्त मात्र बनकर सेवा करते हुए आध्यात्मिकता की ज्योति को तेज करनी चाहिए, ताकि हम बेहतरीन मानव बन सके। उन्होंने कहा कि हमें अपने जीवन का ध्यय उच्च रखते हुए आध्यात्मिकता के बल पर पूरे समाज को मुक्ति का मार्ग दिखाना चाहिए। राष्ट्रगान से कार्यक्रम का समापन हुआ। इस अवसर पर इस्कॉन मंदिर के प्रतिनिधियों ने शिक्षकों को ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ तथा ‘योग की पूर्णता’ पुस्तक का वितरण किया।

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