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लखीसराय में आयोजित हुआ माता की बेलभरनी का कार्यक्रम, गणमान्य लोग रहे उपस्थित,जत्था को हरी झंडी दिखाया गया।

लखीसराय चानन

लखीसराय (सुजीत कुमार)– दुर्गा पूजा के अवसर पर देवी दुर्गा को बेलपत्र (बेल के पत्ते) अर्पित करने की परंपरा होती है, जिसे “बेलभरनी” कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि माँ दुर्गा को बेलपत्र चढ़ाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है।

इस दौरान शुद्धता का विशेष ध्यान रखा गया। बेलपत्र तोड़ने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना आवश्यक माना गया। परंपरा के अनुसार, बेल तोड़ते समय “ॐ नमः शिवाय” या “जय माता दी” का उच्चारण किया गया और इसे दाएँ हाथ से तोड़ा गया।

तीन पत्तों वाला बेलपत्र सबसे शुभ माना गया। देवी को अर्पित करते समय उसकी चिकनी सतह माँ की ओर और डंठल ऊपर की ओर रखा गया। पुराणों में बेल वृक्ष को स्वयं देवी लक्ष्मी और माँ दुर्गा का स्वरूप माना गया है।

इसी परंपरा के तहत लखीसराय जिले के विभिन्न प्रखंडों के दुर्गा मंदिरों में बेलभरनी का आयोजन धूमधाम से किया गया। चानन प्रखंड में सोमवार, 29 सितंबर की संध्या 7 बजे कार्यक्रम का शुभारंभ प्रमुख प्रतिनिधि दिनेश यादव ने कमिटी के सदस्यों संग फीता काटकर किया। इस अवसर पर उप प्रमुख शिवनंदन बिंद, पंचायत समिति सदस्य मलिया से सत्यनारायण दास, इटौन से बेबी देवी तथा संग्रामपुर से निरंजन पासवान उपस्थित

रहे। कमिटी में अध्यक्ष रामानंद वर्मा, सचिव निवास वर्णवाल, कोषाध्यक्ष लखींद्र वर्मा सहित कई सदस्य मौजूद रहे। वही प्रखंड विकास पदाधिकारी प्रिया कुमारी संग चानन थाना प्रभारी रविन्द्र प्रसाद शामिल रहे। इसके अलावा प्रमुख सदस्यों में अजय वर्णवाल, अरविंद प्रसाद वर्मा, सोहन प्रसाद गुप्ता, रामोतार साव, बजरंगी साव, संजय सुमन, बौधू राम, बमबम यादव, श्रीराम वर्णवाल,

कुंदन चौहान, अजीत लहेरी, चंदन साव, संजय वर्णवाल, श्रीकांत यादव, निरंजन साव, भुनेश्वर यादव और प्रिंस कुमार शामिल थे। कार्यक्रम के दौरान भक्तिमय माहौल बना रहा। श्रद्धालुओं ने माँ दुर्गा के जयकारे के बीच बेलपत्र अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया। बेलभरनी के बाद परंपरागत ढंग से माता की डोली निकाली गई। मुख्य व्रती अरविंद वर्मा और रामोतार साव रहे, जबकि माली

किशोरी मालाकार माता की डोली लेकर नगर भ्रमण पर निकले। नगर भ्रमण के बाद माता की डोली पुनः मंदिर में लाई गई। पूजनोत्सव के उपरांत परंपरा के अनुसार कुंवारी कन्याओं और ब्राह्मणों को भोजन कराया गया। इसके बाद माता का पट्ट खोला गया और श्रद्धालुओं ने माता के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।

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