बिहारलोकल न्यूज़

भारत विकास परिषद् तथा जन सुराज द्वारा तीन दिवसीय हिन्दी दिवस समारोह आयोजित।

दरभंगा

 

*हिन्दी महासागर सदृश जो पूरे भारतवर्ष को एक सूत्र में पिरोने में सक्षम- डॉ जगत नारायण*

*हिन्दी हमारी राष्ट्रीय एकता, संस्कार-संस्कृति तथा आत्मसम्मान की भाषा- डॉ चौरसिया*

*हिन्दी सहजता एवं सरलता पूर्ण भाषा, जिसमें मौलिकता के साथ ही समग्रता भी निहित- डॉ महेन्द्र लाल*

 

दरभंगा – भारत विकास परिषद् की भारती- मंडन शाखा, दरभंगा तथा जन सुराज, दरभंगा के संयुक्त तत्त्वावधान में हिन्दी दिवस के अवसर पर तीन दिवसीय समारोह का आयोजन आकाशवाणी रोड, दरभंगा स्थित महाराजा होटल में किया गया। लोकचिकित्सा डॉ महेन्द्र लाल दास

की अध्यक्षता में आयोजित समापन समारोह का शुभारंभ भारत विकास परिषद्, दरभंगा के अध्यक्ष अनिल कुमार ने किया, जबकि मुख्य वक्ता के रूप में परिषद् की भारती- मंडन शाखा के सचिव डॉ आर एन चौरसिया ने हिन्दी के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। जन सुराज पार्टी की ओर से दरभंगा ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के संभावित प्रत्याशी डॉ जगत नारायण नायक के स्वागत एवं संचालन

में आयोजित कार्यक्रम में मारवाड़ी कॉलेज के बर्सर डॉ अवधेश प्रसाद यादव तथा एमएलएसएम कॉलेज, दरभंगा की प्राध्यापिका डॉ अंजू कुमारी आदि ने हिन्दी दिवस पर अपने विचार रखें, जबकि परिषद् के पूर्व सचिव दिलीप कुमार महासेठ ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर उमेश कुमार राय, कुणाल कुमार, देवेन्द्र यादव, रवि रंजन, विजय कुमार पासवान तथा श्रीकांत कुमार आदि ने सक्रिय भूमिका निभाया।

अनिल कुमार ने 1963 में स्थापित भारत विकास परिषद् के पांच सूत्रों- संपर्क, सेवा, सहयोग, संस्कार और समर्पण की चर्चा करते हुए कहा कि यह निःस्वार्थ भाव से सेवा एवं समर्पण का संगठन है। उन्होंने भारत को विविध भाषाओं का देश बताते हुए कहा कि राष्ट्र का सम्मान हिन्दी की समृद्धि एवं विकास में निहित है। स्वागत संबोधन में समारोह के संयोजक डॉ जगत नारायण ने हिन्दी के महत्व पर कविता पाठ करते हुए कहा कि हिन्दी महासागर सदृश है, जिसमें अन्य कई भाषाएं समाहित हैं। हिन्दी भारतवर्ष को एक माला रूपी सूत्र में पिरो सकती है। मातृभाषा पूजनीय है, पर राष्ट्रभाषा भी आदरणीय होती है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक कारणों से ही हिन्दी आज तक राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी है। डॉ नायक ने अपनी कमाई का 50% धन जनहित में खर्च करने का संकल्प व्यक्त करते हुए कहा कि मैं एक ऐसा स्कूल खोलना चाहता हूं, जिसमें शिक्षा के साथ ही संस्कार भी दिए जाएंगे।

मुख्य वक्ता डॉ आर एन चौरसिया ने हिन्दी की महत्ता एवं हिन्दी दिवस मनाने के औचित्य पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि हिन्दी विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। यह हमारी राष्ट्रीय एकता, संस्कार-संस्कृति तथा आत्मसम्मान की भाषा है। इससे आमलोगों तक सीधा एवं प्रभावी संवाद स्थापित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी में भाषण देकर विश्व स्तर पर हिन्दी की पहचान को सशक्त बनाया। वहीं ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनेक वैश्विक मंचों पर हिन्दी में वक्तव्य देकर इसे अंतरराष्ट्रीय सम्मान दिलाया।

परिषद् की महिला संयोजिका डॉ अंजू कुमारी ने कहा कि संविधान सभा द्वारा हिन्दी को भारत की आधिकारिक राजभाषा के रूप में 14 सितंबर, 1949 को स्वीकार किया गया था। यह केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हम सब की पहचान तथा विचारों एवं भावनाओं की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। उन्होंने आह्वान किया कि हम सब पूरे आत्मविश्वास से हिन्दी को उचित सम्मान देकर नई पीढ़ी तक इसे पहुंचाएं और राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाए। परिषद् के उपाध्यक्ष डॉ अवधेश प्रसाद यादव ने कहा कि हिन्दी किसी भी क्षेत्रीय भाषा का विरोधी नहीं, बल्कि यह सामाजिक समरसता के लिए आवश्यक है। हिन्दी काफी सरल एवं अति व्यापक भाषा है। 14 सितंबर, 1953 से लगातार हिन्दी दिवस मनाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य हिन्दी को सशक्त बनाना है।

अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ महेन्द्र लाल दास ने कहा कि हिन्दी में सहजता एवं सरलता पूर्ण भाषा है, जिसमें मौलिकता के साथ ही समग्रता भी है। भक्तिकाल को हिन्दी का स्वर्ण युग माना जाता है। हिन्दी हमें अपनी सांस्कृतिक पहचान, आपसी एकता तथा विरासत से जुड़ने का अवसर देता है। उन्होंने कहा कि हिन्दी के विकास में ही हम सबका विकास भी निहित है। कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलन से, जबकि समापन राष्ट्रगान से हुआ।

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