
रांची – दिशोम गुरु (’धरती के नेता’) शिबू सोरेन का सोमवार 4 अगस्त 2025 सुबह 8:56 बजे दिल्ली स्थित सर गंगा राम अस्पताल में हुआ। इनकी आयु 81 वर्ष की थी। पिछले महीनों से किडनी की गंभीर बीमारी, स्ट्रोक, मधुमेह, हृदय रोग से पीड़ित थे; लगभग एक महीने से वेंटिलेटर पर थे।उनके निधन की पुष्टि बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने की। उन्होंने भावुकता से लिखा“आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए… आज मैं ‘शून्य’ हो गया हूं।”
ज्ञात हो कि 11 जनवरी 1944, नेमरा गांव, रामगढ़ (तत्कालीन बिहार, अब झारखंड) में इनका जन्म हुआ था। 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के सह-संस्थापक और आदिवासी आंदोलन को संगठित करने में अग्रणी रहे थे। इन्हें झारखंड आंदोलन के जनक माने जाते थे 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य का गठन के बाद तक में तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री, आठ बार लोकसभा सांसद, और दो बार राज्यसभा सदस्य रहे।केंद्र सरकार में कोयला मंत्रालय सहित महत्वपूर्ण पदों पर रहे। इनका आदिवासी एवं वंचितों के अधिकारों के लिए समर्पित अंतर्दृष्टि थी। इनके निधन से देशभर में शोक की लहर दौड़ी, विभिन्न नेताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आदिवासी समुदाय के लिए उनके योगदान को यादगार बताया और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें जमीन से जुड़े नेता बताया, जिन्होंने आदिवासी व वंचितों के सशक्तिकरण के लिए संघर्ष किया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, मल्लिकार्जुन खड़गे, रघुवर दास, लालू प्रसाद यादव, मायावती और अन्य नेताओं ने भावपूर्ण संदेश भेजे और उनके जीवन को प्रेरणास्रोत बताया।
झारखंड विधानसभा और राज्यसभा में भी मौन रखा गया, और कई सार्वजनिक कार्यक्रम स्थगित किए गए। आदिवासी अधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष ने उन्हें ‘दिशोम गुरु’ का सम्मान दिलाया। ग्रामीण व आदिवासी समाज को संगठित कर भगड़ा सामाजिक न्याय आंदोलन की नींव रखी। आज भी उनके नेतृत्व को झारखंड आंदोलन की दिशा और पहचान देने वाले रूप में देखा जाता है। उनका निधन झारखंड और भारतीय राजनीति में एक युग के समापन का प्रतीक है।





