
नई दिल्ली/रांची – झारखंड आंदोलन के प्रणेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक दिशोम गुरु शिबू सोरेन का मंगलवार रात निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे और दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में बीते कई दिनों से भर्ती थे। उनके निधन से झारखंड की राजनीति और आदिवासी समाज को अपूरणीय क्षति पहुँची है। राज्यभर में शोक की लहर है और सभी राजनीतिक-सामाजिक संगठनों में मातम पसरा हुआ है।
राजकीय सम्मान के साथ होगा अंतिम संस्कार को लेकर शिबू सोरेन का पार्थिव शरीर विशेष विमान से बुधवार को रांची लाया गया, जहां मुख्यमंत्री आवास पर आम लोगों और नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। अंतिम संस्कार 7 अगस्त को उनके पैतृक गांव नेमरा (रामगढ़ जिला) में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। झारखंड सरकार ने उनके सम्मान में राजकीय शोक की घोषणा की है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कई नेताओं ने शोक जताया। वही।राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर गंगाराम अस्पताल पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, झामुमो नेता हेमंत सोरेन और अन्य प्रमुख नेताओं ने अस्पताल और रांची में उपस्थित होकर अंतिम दर्शन किए। झारखंड विधानसभा, मुख्यमंत्री आवास और पार्टी कार्यालयों में शोकसभा का आयोजन किया गया। शिबू सोरेन को झारखंड के लोग स्नेहपूर्वक ‘दिशोम गुरु’ कहकर पुकारते थे, जिसका अर्थ होता है – आदिवासी समाज का मार्गदर्शक। उन्होंने आदिवासियों की ज़मीन, अधिकार और पहचान के लिए झारखंड आंदोलन को संगठित किया और वर्षों तक संघर्ष किया।
वे झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और सबसे बड़े चेहरा थे। तीन बार केंद्र सरकार में कोयला, खान और श्रम मंत्री रहे। वर्ष 2005 में वे कुछ समय के लिए झारखंड के मुख्यमंत्री भी बने। उनका पूरा राजनीतिक जीवन आदिवासी समाज के हक और स्वाभिमान के लिए समर्पित रहा। हजारीबाग सदर विधायक प्रदीप प्रसाद ने दिशोम गुरु के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की। उन्होंने कहा, “शिबू सोरेन सिर्फ एक नेता नहीं, झारखंड की आत्मा थे। उन्होंने जिन आदिवासियों की बात संसद में उठाई, आज उनका दर्द हर दिल में है।”शिबू सोरेन की राजनीतिक विरासत अब उनके पुत्र हेमंत सोरेन और पुत्रवधू कल्पना सोरेन के पास है। हेमंत सोरेन ने भी अपने पिता की राह पर चलते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी निभाई है।।झारखंड की राजनीति में अब एक नया अध्याय शुरू होगा, लेकिन दिशोम गुरु की संघर्षशील राजनीति और सामाजिक चेतना की छाया हमेशा बनी रहेगी। लोगो के अनुसार “एक युग का अंत हुआ है, लेकिन दिशोम गुरु का विचार और आदर्श झारखंड के जन-जन में जीवित रहेगा।





