गिद्धौर निवासी प्रख्यात हिंदी कवि प्रभात सरसिज के निधन से शोक की लहर, पटना के दीघा घाट पर हुआ अंतिम संस्कार।
जमुई

गिद्धौर- हिंदी साहित्य जगत के ख्यातिप्राप्त कवि, समाजसेवी एवं पत्रकार गिद्धौर निवासी प्रभात सरसिज का सोमवार की सुबह 4:25 बजे पटना में निधन हो गया। वे काफी समय से वृद्धावस्था से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित थे। डायबिटीज और किडनी फेल्योर के चलते वे डायलिसिस पर थे। उनका अंतिम संस्कार पटना के दीघा घाट पर किया गया, जहां उनके बड़े पुत्र अभिषेक कुमार सिन्हा ने उन्हें मुखाग्नि दी।
इस अवसर पर छोटे पुत्र धनंजय कुमार सिन्हा, भतीजे पूर्णाभ शरद, नीलाभ शरद, राजीव रावत सहित परिवार के अन्य सदस्य एवं निकट संबंधी मौजूद रहे। यह जानकारी उनके भतीजे सुशांत साईं सुंदरम ने दी। उनके निधन से गिद्धौर समेत पूरे जमुई जिले में शोक की लहर है। इस दुखद मौके पर झाझा विधायक दामोदर रावत ने गहरी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि प्रभात सरसिज जी न केवल प्रख्यात हिंदी कवि थे, बल्कि समाज सेवा में भी उनका योगदान अविस्मरणीय रहा। उन्होंने कहा कि मेरा उनसे व्यक्तिगत संबंध रहा है। उनके साथ बिताए समय ने मुझे बहुत कुछ सिखाया। उनका साहित्य और समाज के प्रति समर्पण हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा। जमुई विधायक श्रेयसी सिंह ने प्रभात सरसिज के निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदी साहित्य के वरिष्ठ एवं प्रख्यात कवि, साहित्यकार, पत्रकार और राजनीतिक विचारक गिद्धौर निवासी प्रभात कुमार सिन्हा जी, जिन्हें साहित्य जगत में प्रभात ‘सरसिज’ के नाम से जाना जाता है, का आज पटना में निधन होने की सूचना से मर्माहत हूं। वे अपनी रचनाओं के माध्यम से सदा अमर रहेंगे। श्रेयसी सिंह ने प्रभात सरसिज की एक कविता की पंक्तियों के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की, सदी कांपती हुई अस्त हो रही है, सागर में ठहाका लगाता हुआ वह बार-बार कहता है – तुम्हारे सुरक्षा की जिम्मेवारी मुझ पर है! उन्होंने कहा कि सरसिज जी की साहित्यिक यात्रा आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर है। बिहार पंचायत-नगर प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष आनंद कौशल सिंह ने भी उनकी स्मृति को नमन करते हुए कहा कि प्रभात सरसिज का लेखन, चिंतन और सामाजिक सक्रियता समाज को एक नई दिशा देता रहा है। उन्होंने हिंदी साहित्य को जो योगदान दिया, वह हमेशा स्मरणीय रहेगा। उनके मित्र कवि ज्योतींद्र मिश्र, पूर्व प्रखंड प्रमुख श्रवण यादव, भाजपा मंडलाध्यक्ष राजाबाबू केशरी समेत कई अन्य साहित्यप्रेमियों और समाजसेवियों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रभात सरसिज का जन्म 29 सितंबर 1949 को बिहार के जमुई जिले के गिद्धौर गांव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम प्रभात कुमार सिन्हा था, मगर साहित्य जगत में वे प्रभात सरसिज नाम से ही लोकप्रिय हुए। साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि में जन्मे सरसिज ने गांव से ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। महज नौंवी कक्षा में ही उनकी पहली कहानी “शालीग्राम सिंह और उनका नौकर” अखबार में प्रकाशित हुई थी। यहीं से उनके साहित्यिक सफर की शुरुआत हुई। उन्होंने भागलपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. किया और उनकी कविताएँ देशभर के कई प्रतिष्ठित अखबारों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। साथ ही भागलपुर एवं पटना आकाशवाणी से भी उनकी कविताओं का प्रसारण हुआ। प्रभात सरसिज न केवल साहित्यकार थे, बल्कि सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही। 1974 के जे.पी. आंदोलन में उन्होंने अहम भूमिका निभाई और इस दौरान पुलिसिया उत्पीड़न भी झेला। वे खादी ग्रामोद्योग में आचार्य राममूर्ति के सचिव के रूप में भी कार्यरत रहे। वे हमेशा ईमानदारी और नैतिकता की राह पर चले। कुछ वर्षों तक पटना आकाशवाणी में कार्य करने के बाद वे अपने गांव लौट आए और प्रौढ़ शिक्षा, साक्षरता अभियान और ग्रामीण विकास में सक्रिय योगदान दिया। उन्होंने अपने गांव में राजमणि इंटरमीडिएट कॉलेज एवं राजमाता गिरिराज कुमारी गर्ल्स हाई स्कूल की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजनीतिक जीवन में भी वे सक्रिय रहे और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के साथ पदयात्रा की। वे झाझा विधायक दामोदर रावत और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. दिग्विजय सिंह के राजनीतिक सहयोगी भी रहे। सत्ता की राजनीति से अक्सर खिन्न रहने वाले सरसिज जी अंततः साहित्य और समाज सेवा में ही तल्लीन रहे। प्रभात सरसिज की रचनाएँ आज भी नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका जीवन साहित्य, संघर्ष और सेवा की अद्भुत मिसाल है। उनके निधन से हिंदी साहित्य और समाज सेवा के क्षेत्र में जो रिक्तता आई है, उसकी भरपाई कठिन है।