स्कूल में पानी की कमी से जूझ रहे बच्चे संग रसोईया,अधिकारी आवेदन मिलने के बाद भी नहीं कर रहे निदान।
लखीसराय

लखीसराय – सरकारी विद्यालयों में होने वाली कमी को किस तरीके से अधिकारी नजर अंदाज करते हैं और कैसे यह बात महीनों तक दबी रह जाती है और जब ग्रामीण सजग होते हैं तो पूरी पोल खुलती नजर आती है इसे साफ समझा जा सकता है।
प्राथमिक विद्यालय बाबा स्थानम्बतपुर चानन में माह से पानी की व्यवस्था से रसोईया संगबच्ची की चिंता है। इसका मुख्य कारण विद्यालय का समर सेबुल और चापाकल खराब शब्द बताए गए हैं। पुराने संबंधित अधिकारी को भी लिखा गया है लेकिन सुनवाई नहीं ली जा रही है।
इसको लेकर विद्यालय की शिक्षिका प्रतिभा कुमारी ने बताया कि पानी के लिए बच्चे इधर उधर जाते है ये लोग घर से ही बोतल में पानी लेकर आते है और उसका उपयोग करते है दूसरी ओर पानी की कमी से खाना बनाने में दिक्कतें होती है।
वही सीता देवी, मुन्नी देवी, सुमित्रा देवी ने बताया कि इसको लेकर दूसरे घर वाले भी पानी देने से कतराते हैं दूसरे घर वालों का कहना है कि हम लोगों का बिजली बिल लगता है और प्रतिदिन आधे घंटे मोटर को चलाकर पानी देने के बाद बिजली बिल भरपाई करना होता है अगर एक दिन की बात होती तो कहा जा सकता था पर रोजाना नहीं हो पाएगा और इसलिए पानी नहीं दे पाएंगे। वही दूसरी तरफ दूर से चापाकल से पानी लाने और बर्तन को धोने के लिए ले जाने में काफी दिक्कतें होती है।
ज्ञात हो कि यहां विद्यालय परिसर के बाहरी हिस्से में एक चापाकल तो है लेकिन वह भी कई महीनों से खराब पड़ा हुआ है। मामले को लेकर प्रभारी वंदना सरोज से हुई बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि इसकी जानकारी प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के साथ जिला शिक्षा पदाधिकारी को भी है क्योंकि इसको लेकर बी आर सी में हम लोगों ने आवेदन भी देने का काम किया। जब इस समर सेबुल को ठीक किया जाता है तो ये कुछ दिनों तक चलने के उपरांत पुनः खराब हो जाता है और अब तो मिस्त्री ने पंप से सिलेंडर का गिर जाना बताया है इससे अब नए बोरिंग को करवाना ही जरूरी होगा। वही ग्रामीणों में सतीश कुमार ने भी पानी की कमी को बताया तो महिला मानो देवी ने बताया कि बच्चों को कुछ भी नहीं मिलता है, खाना भी उचित नहीं है, बच्चों को दाल भात ही खिलाया जाता है कभी फल, अंडा तो देखा ही नहीं है। वही रसोईया ने कहा कि हम लोगों को मिलने वाली राशि काफी कम है ₹50 में क्या होना होगा जबकि यह राशि ससमय भी नहीं मिल पाती है। अब ऐसे में समस्याओं का निदान कैसे होगा जब अधिकारी ही बातों को उचित रूप से संज्ञान में लेना नहीं चाहते हैं।